आर्मी रूल बुक सेना को सियासी मुद्दों पर बोलने का हक नहीं देती; सेना के पूर्व जज बोले- ऐसा बयान सेना प्रमुख के भी खिलाफ

नई दिल्ली. सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने गुरुवार को दिल्ली के एक कार्यक्रम में कहा-  ‘लीडर वह नहीं है, जो लोगों को भटकाने का काम करता है। हमने देखा है कि बड़ी संख्या में यूनिवर्सिटी और कॉलेज के छात्र आगजनी और हिंसक प्रदर्शन के लिए भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं। इस भीड़ का एक लीडर है, लेकिन असल मायने में यह लीडरशिप नहीं है।’ सेना प्रमुख का यह बयान नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन के संदर्भ में था। सेना के राजनीतिक मसलों में शामिल होने पर बहस छिड़ी है। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने तो यहां तक ट्वीट कर दिया कि ‘कहीं हम पाकिस्तान के रास्ते तो नहीं चल रहे?’ भास्कर ने इस बारे में आर्मी रूल बुक-1954 को खंगाला। इसके मुताबिक सेना से जुड़ा कोई भी व्यक्ति राजनीतिक मुद्दों पर राय नहीं रख सकता और अगर ऐसा करना जरूरी हो तो पहले सरकार की मंजूरी जरूरी है।


आर्मी रूल बुक का नियम 21: सेना में किसी को भी राजनीतिक मुद्दों पर बोलने से पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी                                                                                                                                      (i) इस कानून से जुड़ा कोई भी व्यक्ति केंद्र सरकार या सरकार की तरफ से तय किए गए किसी अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना राजनीतिक सवाल से जुड़े किसी मुद्दे, सेवा के विषय या सेवा से जुड़ी जानकारी को सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से न तो किसी प्रेस में न प्रकाशित करा सकता है, न भेज सकता है, न किसी किताब, पत्र, लेख या दस्तावेज में उसे प्रकाशित कर सकता।


(ii) इस कानून से जुड़ा कोई भी व्यक्ति राजनीतिक सवाल से जुड़े किसी मुद्दे, सेवा के विषय या सेवा से जुड़ी जानकारी पर न कोई लेक्चर दे सकता है, न वायरलेस तरीके से उसे संबंधित कर सकता है।


सेना के रिटायर्ड जज बोले- जनरल रावत का बयान गलत, यह उनके नेतृत्व के लिए भी सही नहीं 



  • .सेना से रिटायर्ड जज एडवोकेट जनरल- मेजर जनरल नीलेंद्र से जब भास्कर ने पूछा कि क्या सेना प्रमुख का बयान सेना के नियमों का उल्लंघन करता है, तो उन्होंने कहा कि- ‘मिलिट्री में प्रेस के साथ कम्युनिकेशन की मनाही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें नहीं होती। यदि किसी मुद्दे पर कोई बयान या भाषण देना हो, तो सेना मुख्यालय या रक्षा मंत्रालय की पूर्व अनुमति लेना जरूरी है।’ 

  • .मेजर जनरल नीलेंद्र आगे बताते हैं कि ‘सेना में किसी भी व्यक्ति को राजनीतिक स्वभाव के लेख, बयान या भाषण नहीं देने चाहिए। इस बारे में बोलना है तो पहले मंजूरी लेनी चाहिए। वैसे भी पूरे देश को लीडरशिप के बारे में भाषण देने की जरूरत क्या है? जिस संदर्भ में जनरल रावत ने बयान दिया उसमें राजनीतिक पुट तो था ही। यह खुद उनके नेतृत्व के लिए भी सही नहीं था। क्योंकि कल अगर उनके लेफ्टिनेंट जनरल, मेजर जनरल या कर्नल इस तरह बोलने लग गए, तो सेना के अनुशासन क्या होगा? बयानबाजी करना सेना के अनुशासन के खिलाफ है।'

  • .हालांकि सेना में मीडिया देख रहे अधिकारी नाम न जाहिर करने की शर्त पर कह रहे हैं कि जनरल रावत ने अपने भाषण में न तो नागरिकता कानून का जिक्र किया था और न ही किसी राजनीति घटना या व्यक्तित्व का उल्लेख किया।


बयान के विरोध में तर्क



  • सेना प्रमुख का बयान राजनीतिक था, जो सेना के नियमों का उल्लंघन है।



  • छात्रों के प्रदर्शन पर सेना प्रमुख नहीं बोल सकते। ये गृह मंत्रालय का मसला है।

  • उनका बयान सेना जैसी गैर-राजनीतिक संस्था और लोकतंत्र को कमजोर करता है।



    • सेना प्रमुख का बयान विपक्ष पर हमला है।


     




     



 


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