Teenage Cell Phone Addiction: स्मार्टफोन की लत के शिकार हैं 25 फीसद बच्चे और युवा

लंदन,। स्मार्टफोन किसी नशे से कम नहीं है, इसकी लत लोगों को दिन-ब- दिन अपनी जकड़ में लेती जा रही है। किंग्स कॉलेज ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि हर चार में से एक बच्चा यानी 25 फीसद बच्चे स्मार्टफोन पर निर्भर हैं। इसके खो जाने या टूटने-फूटने पर वे परेशान हो जाते हैं।


वैश्विक स्तर पर हुए इस अध्ययन के निष्कर्ष बीएमसी साइकाइट्री नामक जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। इसमें वर्ष 2011 के बाद प्रकाशित हुए 41 अध्ययनों का विश्लेषण को शामिल किया गया है, जिसमें 41871 बच्चों और युवाओं को शामिल किया गया था।


इस अध्ययन में स्मार्टफोन के इस्तेमाल का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन किया गया है। अध्ययन में बताया गया है कि 10 से 30 फीसद बच्चे और युवा अपने फोन को बड़े बेतरतीब तरीके से इस्तेमाल करते हैं। इसका मतलब है कि लगभग 23 फीसद लोगों में प्रॉब्लमेटिक स्मार्टफोन यूजेज (पीएसयू) के लक्षण देखे गए।


किंग्स कॉलेज ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं के मुताबिक, पीएसयू स्मार्टफोन से संबंधित व्यावहारिक परेशानी है जो किसी लत की तरह है। इससे फोन के न मिलने पर घबराहट तक होने लगती है। इसे नजरअंदाज करने से एक और समस्या पैदा हो सकती है। दूसरे शब्दों में कहें तो पीएसयू एक लत है जिसमें व्यक्ति 24 घंटे केवल स्मार्टफोन से ही चिपका रहता है।


शोधकर्ताओं ने बताया कि इन 41 अध्ययनों में एशिया के 30 यूरोप के नौ और अमेरिका के दो अध्ययनों को शामिल किया गया था। इसमें 55 फीसद प्रतिभागी महिलाएं थीं और 17 से 19 साल की ज्यादातर युवा महिलाओं के पीएसयू से ग्रसित होने की संभावना ज्यादा थीं। इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि जो लोग स्मार्टफोन के आदी होते हैं उन्हें मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे- चिंता, घबराहट, तनाव, नींद में कमी, अवसाद जैसी समस्या घेरने लगती हैं।


किंग्स कॉलेज ऑफ लंदन के शोधकर्ता निकोला कल्क ने कहा कि इन समस्याओं के लिए स्मार्टफोन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। लेकिन हमें स्मार्टफोन के उपयोग की व्यापकता को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि स्मार्टफोन में मौजूद एप्स प्रॉब्लेमेटिक बिहेवियर के लिए जिम्मेदार हैं। फिर भी बच्चों और युवा लोगों में स्मार्टफोन के उपयोग को लेकर जागरूकता की जरूरत है। इसके साथ ही अभिभावों को भी यह पता होना चाहिए कि उनके बच्चे अपने फोन पर कितना समय बिताते हैं। यदि बच्चों की एक हद तक निगरानी की जाए तो इस समस्या से आसानी से पार पाया जा सकता है।




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